वह प्रोडक्ट जो मैंने खरीदा लेकिन कभी इस्तेमाल नहीं किया (हम सबके पास एक तो होता ही है!)

 

वह प्रोडक्ट जो मैंने खरीदा लेकिन कभी इस्तेमाल नहीं किया (हम सबके पास एक तो होता ही है!)

शॉपिंग का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में एक अलग ही एक्साइटमेंट आ जाती है। कभी ऑनलाइन साइट्स पर स्क्रॉल करते हुए, तो कभी मॉल की चमचमाती शेल्फ़्स को देखते हुए हमें लगता है—“ये चीज़ तो ज़रूर लेनी चाहिए।” उस वक्त प्रोडक्ट इतना ज़रूरी लगता है जैसे इसके बिना ज़िंदगी अधूरी है। और फिर हम उसे खरीद भी लेते हैं। लेकिन कुछ दिन बाद जब वही प्रोडक्ट अलमारी के किसी कोने में पड़ा धूल खा रहा होता है, तो समझ आता है कि हमने सिर्फ़ एक और बेकार चीज़ अपनी ज़िंदगी में जोड़ ली है।


हम सबके साथ ऐसा हुआ है। कभी किसी ऑफर का लालच हमें फँसा लेता है—“50% डिस्काउंट सिर्फ आज तक!” और हम बिना सोचे-समझे ऑर्डर कर देते हैं। कभी सोशल मीडिया पर किसी इन्फ्लुएंसर को देखकर लगता है कि ये प्रोडक्ट हमारी लाइफ़ बदल देगा। और कई बार तो बस जिज्ञासा के चलते हम सोचते हैं, “ट्राय कर लेते हैं।” लेकिन हकीकत ये है कि उस बॉक्स को खोलने का मौका ही नहीं आता।




सोचिए, कितनों ने ट्रेडमिल या योगा मैट खरीदा होगा, जिन पर अब कपड़े टंगे रहते हैं। कितनों ने वफ़ल मेकर, जूसर या ग्रिलर लिया होगा, जो रसोई में किसी अलमारी के अंदर पड़े हैं। कितनों ने महंगे फेस मास्क या सीरम खरीदे होंगे, जिन्हें दो बार लगाकर छोड़ दिया। और डायरी? खूबसूरत कवर वाली, मोटी पन्नों वाली डायरी, जो सालों से पहले पन्ने का इंतज़ार कर रही है।


असल में ये हमारी Impulse Buying की आदत है। उस वक्त हमें लगता है कि ये प्रोडक्ट हमारी ज़िंदगी आसान बना देगा। लेकिन सच्चाई ये है कि वो सिर्फ़ थोड़ी देर की खुशी और बहुत सारा पछतावा देता है। हाँ, ये बात मज़ेदार भी है क्योंकि ऐसे प्रोडक्ट्स हमें बाद में हँसी भी दिलाते हैं। जब हम किसी दोस्त को बताते हैं—“ये देखा, मैंने खरीदा था… लेकिन आज तक इस्तेमाल नहीं किया”—तो सामने वाला भी मुस्कुरा देता है क्योंकि शायद उसके पास भी ऐसा ही कोई प्रोडक्ट पड़ा है।


ये छोटी-सी आदत हमें एक बड़ी सीख देती है। शॉपिंग सिर्फ़ पैसों का नहीं बल्कि सोच-समझ का खेल है। हर बार जब हम किसी ऑफर या ऐड से ललचाएँ, तो एक पल रुककर सोचना चाहिए—क्या हमें सच में इसकी ज़रूरत है, या ये भी उसी लिस्ट में शामिल होने वाला है जहाँ पहले से धूल खाते सामान पड़े हैं।


शायद अगली बार हम थोड़ा समझदारी से खर्च करेंगे। लेकिन तब तक, वो प्रोडक्ट—जो हमने खरीदा पर कभी इस्तेमाल नहीं किया—हमारी अलमारी में हमें मुस्कुराकर यही याद दिलाता रहेगा कि इंसान कभी-कभी पैसों से ज़्यादा अपनी इच्छाओं का शिकार होता है।

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